कल की रात,
बैठे थे हम चार यार,
मैं,
मेरी तन्हाई,
मेरे आंसू
और उसकी यादे,
बात हो रही थी बेवफाई की,
कोई सुना रहा था अपना गम,
कोई बांट रहा था अपना दर्द,
मगर यादें थी खामोश,
मैनें उससे एक सवाल किया,
उसने कुछ युं जवाब दिया,
कैसे अपना हाल-ए-दर्द बयान करू,
अच्छी यादें याद करू,
तो बुरी याद आ जाती है,
बुरी यादें याद करू,
तो अच्छी याद आ जाती हैं,
मैं भी एक ऐसी दुविधा में हू,
यादें अच्छी हो या बुरी,
मैं तो निकल आता हू युंही,
वफा हो या बेवफाई,
मैं तो निकल आता हू युंही,
फिर एक ऐसी खामोशी छायी,
टूटे दिल से भी आवाज न आयी,
कुछ पुछना था तन्हाई से,
कि तनिक उसने मुझे गले लगा दिया,
और आंसू मेरे पौंछ दिये,
बोली क्यूं डुब रहा है इन आंसूओ में,
मत पड यादों के भंवरजाल में,
थाम ले हाथ तु मेरा,
सच्ची यारी निभाउगी,
पूरी दुनिया छोङ दे तेरा साथ,
मैं हर पल साथ निभाउगी,
निकल आये थे आंसू,
सुनकर उसकी यह बात,
खुदा ने भी कैसा यार भेजा हैं,
कल की रात,
बैठे थे हम चार यार,
बात हो रही थी बेवफाई की....
2 Responses to “कल की रात”
awsome yar u realy deserve the 7 stars life .....................................................................................
nice...
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