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Think Power | Short Film on Human Intelligence | #BrainIsDeceitful

80 का दशक

किसी हाउसफुल थिएटर में दर्शक रामसे ब्रदर्स की क्लासिक हॉरर फिल्म देख रहे हैं जिसमें एक चुड़ैल पीछे से आदमी की गर्दन पकडती है और लोग डर के मारे काँप जाते है, तभी फिल्म अचानक रुक जाती है. प्रोजेक्शन रूम में एंट्री होती है नवाजुद्दीन सिद्दीकी की. वो रील बदलता है. फिल्म दुबारा शुरू होती है. खौफ में डूबी दर्शकों की आँखों पर हवस की परत चढ़ने लगती है. डर का कम्पन लावा रूपी ज्वाला में परिवर्तित होकर देह को सुखद एहसास देने लगता है.
     दुग्गल भाइयों को इस काम में महारत हासिल है. बड़ा भाई विक्की दुग्गल(अनिल जॉर्ज) नये कलाकारों के साथ अश्लील फिल्म बनाकर फिल्म निर्माता पीके(राकेश अस्थाना) को बेचता है और फिल्म वितरक हीरा(मनोश बख्शी) रिलीज़ करता है, तो छोटा भाई सोनू दुग्गल(नवजुद्दीन सिद्दीकी) रीलों में अलग से अश्लील दृश्य जोड़ने, रीले सप्लाई करने व नईं-नईं तारिकाओ का इन्तजाम करने का काम करता है.

     यह वो 80 का दशक था जब मुंबई, बॉम्बे हुआ करता था. मल्टीप्लेक्स शब्द दूर-दूर तक

पुर्तगाल मेरे राजस्थान से भी छोटा है!

04 जुलाई 2004, यूरोपियन चैंपियनशिप का फाइनल मैच, पुर्तगाल बनाम ग्रीस. अगली सुबह स्कूल जाते वक्त चाय की थड़ी पर अख़बार पढ़ा, सिर्फ दूर से देखकर लगता था कि बच्चा अखबार पढ़ रहा है, अपना ज्ञान बढ़ा रहा है, पर असल में सेक्स सम्बन्धी विज्ञापन, सिनेमा व खेल पृष्ठ के अलावा कभी कहीं नजर ना ठहरी...तो खेल पृष्ठ पर छपा था...ग्रीस यूरोपियन फुटबॉल का नया बादशाह. कक्षा में सामाजिक विज्ञान के माड़साहब ने भी कहा कि आज का अखबार पढ़ा, नहीं पढ़ा तो पढो और सीख लो...कैसे एक छोटा-सा यूरोपियन देश फुटबॉल की महाशक्ति बनकर उभरा है? उस दिन एक बात पता चली ग्रीस छोटा-सा देश है, राजस्थान से भी छोटा और पुर्तगाल? अरे जनाब ! पुर्तगाल के बारे में तो पहले से ही ज्ञान जबर था...सन् 1500 में सबसे पहले पुर्तगाली ही तो भारत आये थे व्यापार करने.
कट टू 2010, एक दोस्त ने कंप्यूटर में फुटबॉल का गेम इनस्टॉल किया...विनिंग इलेवन 8 और मैंने जीटीए वाईस सिटी के “टॉमी” से दोस्ती तोड़ ली. जब भी मौका मिले, बस फुटबॉल...फुटबॉल...फुटबॉल. रूल्स-रेगुलेशन तो घंटा ही नहीं पता थे, बस इतना सीख लिया था शोर्ट-लॉन्ग पास कैसे देते है, विरोधी खिलाडी को गिराते कैसे है और डी में घुसने के बाद गोल-पोस्ट में बॉल कैसे डालनी है. फिर एक दिन जिन-जिन विरोधी खिलाडियों को गिराकर चोटिल किया था वे सब बदला लेने पहुंचे और कंप्यूटर फॉर्मेट करना पड़ा.

कट टू 2013, उच्च शिक्षा का एक फायदा यह भी है कि तकनीकी स्तर पर आपकी हालत पहले से बेहतर हो जाती है. अब मेरे पास डेस्कटॉप की जगह लैपटॉप था पर दिल तो अभी भी बच्चा ही था. पुराना प्रेम फिर से जाग उठा और मैंने टोरेंट से

Jhoothe Taare | The Lying Stars | Short Film | Osho | Tanuj vyas | Legend DreamWorks

Art or Science? If at all we are able to isolate one of these as an answer, fitting all situations and all times, we may shout it loud with conviction. We might still be right! However, the world that we live in is far more sophisticated than what we could have ever imagined. When an orphan finds hope of his parents’ existence in the form of stars, does he realize how distant is he from the reality? The psychology of an artist might just revolve around poetries and stories but then life has more to accommodate…symbolized by one of the earthen pots shown towards the end of this story… that’s ‘Science’. This movie is about an artist’s perspective and stresses more upon the need for inquisitiveness. However, in some way or the other, it also compels you to think that life may still not just be only about finding all the answers. It is an attempt to simplify further… to know more… to dare and dream accordingly.



अपना हीरो, उनका सुपरहीरो


सुपरहीरो शब्द सुनते ही जेहन में एक साथ कई तस्वीरें उमड़ने लगती हैं- बैटमैन, स्पाइडरमैन, सुपरमैन, आयरन मैन, एक्स-मैन, थोर, जिन्होंने अच्छाई-बुराई के बीच द्वंद को एक नईं परिभाषा दी. हॉलीवुड में बनी इन सुपरहीरोज फिल्मों ने पूरी दुनिया में सफलता की धूम मचा रखी थी जिनसे भारतीय दर्शक भी अछूते नही रहे. इनके रोमांच में इस कदर डूबे की बॉलीवुड कलाकारों को सुपरहीरो के लिबास में देखने के ख्वाब बुनने लगे. छोटे पर्दे पर मुकेश खन्ना ने ‘शक्तिमान’ बन दर्शको को सुपरहीरो की सौगात दी, लेकिन बड़े पर्दे को अब भी एक लम्बा इंतज़ार तय करना था.

आखिरकार 2006 में इंतज़ार खत्म हुआ, निर्देशक राकेश रोशन ने 2003 में अपनी निर्देशित-निर्मित साइंस-फिक्शन फिल्म ‘कोई मिल गया’ के सिक्वल को सुपरहीरो फिल्म ‘क्रिश’ में तब्दील किया और इस तरह बॉलीवुड को उनका पहला सुपरहीरो मिला. कमजोर कहानी के चलते भी फिल्म बच्चो-बुड्ढो में खासा लोकप्रिय हुईं. फिल्म का असली नायक अगर कोई था तो वो ऋतिक रोशन नहीं बल्कि उनके पिता-निर्देशक-निर्माता रोकेश रोशन थे, जिनकी कड़ी मेहनत के बदौलत बड़े पर्दे के पहले सुपरहीरो की निर्माण हुआ.

दिवाली 2013 पर रिलीज़ इस सीरीज की तीसरी फिल्म ‘क्रिश-3’ के ट्रेलर को देख इसे तकनीक के