04 जुलाई 2004, यूरोपियन चैंपियनशिप का फाइनल मैच, पुर्तगाल बनाम ग्रीस. अगली सुबह स्कूल जाते वक्त चाय की थड़ी पर अख़बार पढ़ा, सिर्फ दूर से देखकर लगता था कि बच्चा अखबार पढ़ रहा है, अपना ज्ञान बढ़ा रहा है, पर असल में सेक्स सम्बन्धी विज्ञापन, सिनेमा व खेल पृष्ठ के अलावा कभी कहीं नजर ना ठहरी...तो खेल पृष्ठ पर छपा था...ग्रीस यूरोपियन फुटबॉल का नया बादशाह. कक्षा में सामाजिक विज्ञान के माड़साहब ने भी कहा कि आज का अखबार पढ़ा, नहीं पढ़ा तो पढो और सीख लो...कैसे एक छोटा-सा यूरोपियन देश फुटबॉल की महाशक्ति बनकर उभरा है? उस दिन एक बात पता चली ग्रीस छोटा-सा देश है, राजस्थान से भी छोटा और पुर्तगाल? अरे जनाब ! पुर्तगाल के बारे में तो पहले से ही ज्ञान जबर था...सन् 1500 में सबसे पहले पुर्तगाली ही तो भारत आये थे व्यापार करने.
कट टू 2010, एक दोस्त ने कंप्यूटर में फुटबॉल का गेम इनस्टॉल किया...विनिंग इलेवन 8 और मैंने जीटीए वाईस सिटी के “टॉमी” से दोस्ती तोड़ ली. जब भी मौका मिले, बस फुटबॉल...फुटबॉल...फुटबॉल. रूल्स-रेगुलेशन तो घंटा ही नहीं पता थे, बस इतना सीख लिया था शोर्ट-लॉन्ग पास कैसे देते है, विरोधी खिलाडी को गिराते कैसे है और डी में घुसने के बाद गोल-पोस्ट में बॉल कैसे डालनी है. फिर एक दिन जिन-जिन विरोधी खिलाडियों को गिराकर चोटिल किया था वे सब बदला लेने पहुंचे और कंप्यूटर फॉर्मेट करना पड़ा.

कट टू 2013, उच्च शिक्षा का एक फायदा यह भी है कि तकनीकी स्तर पर आपकी हालत पहले से बेहतर हो जाती है. अब मेरे पास डेस्कटॉप की जगह लैपटॉप था पर दिल तो अभी भी बच्चा ही था. पुराना प्रेम फिर से जाग उठा और मैंने टोरेंट से
फीफा14 डाउनलोड किया. लेकिन कमबख्त गेम इंस्टाल करने के बाद जैसे ही प्ले पर क्लिक किया पूरी स्क्रीन पर अँधेरा छा गया. उस अँधेरे में मुझे मेरी गरीब शक्ल दिख रही थी. तब मुझे ध्यान आया की मेरे सस्ते-से लैपटॉप में ग्राफ़िक्स कार्ड तो है ही नहीं.
कट टू 2014, फुटबॉल वर्ल्डकप. शहरों में आप खुद को कई ऐसी चीज़ों के करीब पाते हो जिन्हें आपने कभी सपनें में भी ना देखा हो और मेरे चारो तरफ फुटबॉल की खुमारी छाई थी. ब्राज़ील, अर्जेंटीना, जर्मनी ही सुनाई दे रहा था. जो पिछले चार से क्रिकेट के अलावा बाकी खेलों को हीन भावना से देखा करते थे उनमें भी फुटबॉल के प्रति प्रेम जाग उठा था. फिर पहली बार मैं दो तरह के प्रशसंको से रूबरू हुआ...दुनिया के दो बेहतरीन फुटबॉलर के प्रशसंक...अर्जेंटीना का लीओन मेस्सी और पुर्तगाल का क्रिस्टियानो रोनाल्डो.
इस दोनों के प्रशसंको की खुमारी का रंग मुझ पर भी चढ़ा और मैं फुटबॉल से आकर्षित होने लगा. मैंने अर्जेंटीना-पुर्तगाल के काफी मैच देखे. इन दोनों खिलाड़ियों का खेल देखा. दोनों के खेलने का अंदाज़ सबसे जुदा था. मेरे हिसाब से उन दोनों की स्किल्स को दुनिया की किसी भी किताब के शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. पर उन दोनों के खेल देखते वक्त मैंने एक बात पर गौर किया, मेस्सी के साथ कई दिग्गज खेल रहे थे जिनका उसे काफी सहयोग मिल रहा था और रोनाल्डो?. वह विरोधी टीम के खिलाडियों से अकेला ही झूझ रहा था, बिल्कुल वन मैन आर्मी की तरह. विरोधी टीम का एक ही मकसद था रोनाल्डो को रोक लो मैच जीत जायेंगे और उसका मकसद था अपने देश के लिए गोल करना. जब उसे ठीक से बॉल पास नहीं मिलती तो वो चिढता, गुस्सा करता और कभी साथी खिलाडियों को गलती करते देख मायूस हो जाता.
पुर्तगाल ग्रुप स्टेज में ही वर्ल्डकप से बाहर हो गया. रोनाल्डो को उदास देख मैं भी उदास था. हम गाँववाले बड़े भोले होते हैं. अकेले इंसान को लड़ते देख उसके साथ खड़े हो जाते हैं और मेरी सारी सहानुभूति रोनाल्डो के साथ थी. इस तरह मैं रोनाल्डो प्रशसंक बन गया.
फाइनल में अर्जेंटीना, जर्मनी से हार गया.
इत्तिफाक से एक दिन फीफा14 लैपटॉप में चल गया और फिर फुटबॉल से दोस्ती गहरी होती गईं. अलग-अलग देशों की फुटबॉल लीग, उसमें खेलने वाले खिलाड़ी, ट्रान्सफर सिस्टम आदि कई बातों के बारे में जानकारी मिली. यह भी पता चला कि मेरा पसंदीदा ख़िलाड़ी स्पेन के रियल मेड्रिड क्लब से खेलता है. मैं हर वीकेंड रियल मेड्रिड के मैच देखता और रोनाल्डो को खेलते देखना मेरे लिए बड़ा सुकून भरा होता. वह रोनाल्डो ही था जिसकी ड्रिब्लिंग, मूव्स, फ्री किक, पेनल्टी देख मुझे फुटबॉल से मोहब्बत हो गईं और खासकर उसका सेलिब्रेशन स्टाइल.
कट टू 10 जुलाई 2016, यूरोपियन चैंपियनशिप का फाइनल मैच, फ्रांस बनाम पुर्तगाल. रोनाल्डो का जो सपना 2004 में पूरा न हो सका, वह फिर से उस सपने के एक कदम करीब खड़ा था और इस बार विश्व फुटबॉल में उसका कद भी बड़ गया था. मुझे विश्वास था कि वह इस बार अपना जादू बिखेरेगा. लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. वह चोटिल हो गया. उसको दर्द से कहराते देख एक तरफ दिल भारी हो गया, दुआ में आँखें बंद हो गईं कि चोट ज्यादा गहरी ना हो, तो दूसरी तरफ फ्रांस के खिलाडी दिमेत्री पयेट की टाँगे तोड़ने का मन करने लगा. लेकिन रोनाल्डो ने मेरे जैसे तमाम करोड़ों प्रशसंको को निराश नहीं किया. घुटने पर पट्टी बाँध हिम्मत ना हारते हुए दुगुने जोश के साथ मैदान में डटा रहा. वह दर्द सहते हुए भी अपनी टीम के लिए हरसम्भव कोशिश कर रहा था.
...और अचानक खेल के 25वें मिनट में वो मैदान में बैठ गया और फुट-फुटकर रोने लगा. पूरे स्टेडियम में सन्नाटा. मेस्सी प्रशसंको का कहना कि रोनाल्डो जब गोल नहीं कर पाता, अच्छा नहीं खेल पाता तब रोता रहता है लेकिन उस रात दुनिया का हर एक फुटबॉल प्रशसंक जानता था कि वे आँसू किस पीड़ा के थे? रोनाल्डो स्ट्रक्चर पर लेटे रोते-रोते मैदान से बाहर गया. मेरी ज़िन्दगी में जितने भावुक पल रहे हो वह उनमें से सबसे कष्टदायक पल थे.
मैंने इस उम्मीद से टेलिविज़न बंद नहीं किया काश आज रात रोनाल्डो चमचमाती ट्रॉफी उठाये. 90 मिनट तक मैच गोलरहित रहा और जैसे ही अतिरिक्त समय शुरू हुआ मेरा हीरो ड्रेसिंग रूम से लौटा. पूरा स्टेडियम उसके समर्थन में गूंज उठा. वह लड़खड़ाते हुए चल रहा था लेकिन जोश में कतई कमी नहीं आयी थी. वह मैदान में नहीं था, लेकिन अपने कोच के पास खड़ा सहायक कोच की भूमिका निभाते हुए मैदान में अपने साथी खिलाडियों को निर्देश दे रहा था. उसके हाव-भाव ऐसे बदल रहे थे मानो कभी भी मैदान में जा सकता है...और 109 वें मिनट में पुर्तगाल के एडर ने गोल कर दिया. रोनाल्डो ख़ुशी के मारे उछलते हुए कोच से लिपटा. अब वह अपने सपने से मात्र 11 मिनट दूर था और उसका सपना पूरा हुआ. अपने देश के लिए पहला इंटरनेशनल कप जीतना.
मेरा हीरो अपनी टी-शर्ट उतार सभी साथियों से गले मिलते बिलख रहा था और इस बार उसके आँसू मुझसे कुछ कह रहे थे...“मेरा पुर्तगाल भी तुम्हारे राजस्थान से छोटा ही है, शायद तुम्हे कभी किसी ने बताया नहीं, वैसे भी उपविजेता के बारे में कौन बात करता है?”
पता नहीं क्यूँ मैं अपने जीवन में दो लोगों से मिलना चाहता था...एक से मिल चूका हूँ और दूसरे से मिलने के लिए एक लम्बा और कठिन सफ़र तय करना है. वैसे कुछ महीनों पहले चार बार साल के सर्वश्रेष्ठ फुटबॉलर का खिताब जीतने और विश्व के अमीर खिलाडियों में से एक क्रिस्टियानो रोनाल्डो ने इंटरव्यू में कहा कि फुटबॉल से संन्यास लेने के बाद मैं फिल्मों में एक्टिंग करना चाहता हूँ. उम्मीद है भविष्य में कहीं मुलाकात हो. आमीन. जन्मदिन मुबारक मेरे हीरो!
और अंत में...
“जब मैं छोटा था तब एक दिन मैंने अपने पिता से कहा कि मुझे माइकल जैक्सन के घर जितना बड़ा घर चाहिए...और मेरे पिता ने हँसते हुए जवाब दिया – ‘बेटा! ऐसे असम्भव सपनें नहीं देखा करते’...आज मेरे पास माइकल जैक्सन के घर से भी बड़ा घर है...पर मेरे पिता मेरे साथ नहीं है”