When i was sat on wall of my hostel's roof lonely. In the black night. timing may be 01:00 AM. that time i wrote this poem....
रात के अंधेरो में बैठे,
आज फिर से यह दिल,
न जाने कहाँ खो गया,
यह सुने सुने रास्ते,
न जाने कहाँ मुझे बुला रहे,
इन रास्तो पे,
न कोई आता जाता,
फिर यह नजरे किसे ढुंढती....
यह ठंडी ठंडी फिजाये,
न जाने किसकी याद दिला रही,
न जाने किसे पास बुला रही,
है कोई आस पास,
तो समां जा मुझमे,
अकेले ही अकेले,
मुझे क्यूं तडपा रही....
यह सितारो की रोशनी,
न जाने किसे ढूँढ रही,
मैं बैठा अंधेरे में अकेला,
मुझमें पता नहीं क्या ढूँढ रही,
इस खुले आसमां को देख,
उसमें समां जाने का,
दिल कर रहा,
रात के अंधेरो में बैठे,
आज फिर से यह दिल,
न जाने कहाँ खो गया....
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