हमें भी कभी शौक था,
रोज डायरी लिखने का,
बस एक दिन तेजी से पलटे,
पन्ने मेरी ज़िन्दगी के,
कुछ पन्ने बतलाते,
जख्मो भरी स्याहीं से लिखे नगमे,
कुछ बतलाते,
उदासी सी फीकी स्याहीं से लिखे अफ़साने,
कोशिश की कुछ लिखूँ,
मोहब्बत के बारे में,
पर आंसुओ में गिले थे,
पन्ने मेरे दिल के,
उनके इंतज़ार में,
हम बस लिखते चले गये,
और वो आये भी तो,
खुद को बिना दिल का हवाला दे,
उड़ा दिए पन्ने हवा में,
अरे यारो! कितने कमबख्त निकले,
मेरे लिखे हर एक पन्ने,
उड़ते जा पहुंचे.
हर गली-मोहल्ले,
पहले से यह बदनाम मोहब्बत,
बेखबर न रही अब जमाने से,
जिसने उडाये थे हवा में पन्ने,
हम जा ठहरे गुनहगार उनके....