न जाने मैं कहाँ चला जा रहा था| मौसम भले ही
सुहावना था पर जिस रास्ते पर मैं चल रहा था वो कुछ रेगिस्तान सा प्रतीत हो रहा था|
आस पास कंटीली झाड़ियाँ, चमकती रेत जिस पर आसानी से चला जा सकता था| दूर दूर कुछ
पेड़ नजर आ रहे थे, तकरीबन हर पेड़ के बिच २०० मीटर का फासला होंगा| मैं धीरे धीरे
आगे बढते हुए दायें बाएं देखे जा रहा था, इंसान तो दूर, पंछियों के उड़ने की भी
कहीं आहट नही थी| थोड़ी देर में रास्ता चढ़ाव का रूप ले रहा था| मुझे ना जाने क्यूँ
बस आगे बढ़ते जाना था| मैं यह सोच भी नही रहा था की आखिर मैं जा कहाँ जा रहा हूँ|
थोडा और चलने के बाद मैं रुक गया, मेरे सामने दो रास्ते थे, मेरे सामने
संकरा और मेरी दायीं तरफ चौड़ा| दोनों ही रास्तो के किनारे पर कंटीली झाड़ियाँ का
घेराव था| मैंने बिना वक़्त बर्बाद किए संकरे रास्ते की तरफ बढ़ना शुरू किया जिसका
चढ़ाव पहले के मुकाबले थोडा ज्यादा था| मैं चढाव पे बेझिझक चढ़ा जा रहा था, ना बाएं
देख रहा था, ना दायें, ना ही कुछ सोच रहा था, बस चला जा रहा था| चढ़ाव खत्म होते ही
मैं दायें मुडा, मेरे सामने उबड़-खाबड़ सा मैदान था| कहीं छोटे खड्डे, कहीं बड़े, वो
ही कंटीली झाड़ियाँ, 200 मीटर के फासले पर पेड़| इधर-उधर कोई नजर नहीं आ रहा था|
धीरे-धीरे आगे बढ़ने के बाद एक ऊँचे स्थान पर चढ़ा| वहाँ खड़े होकर आगे की तरफ नजर
डाली तो नजारा बदल चुका था, छोटे-छोटे तालाब, उनके आसपास अब वो कंटीली झाड़ियाँ नही
थी| दूर कोई बहुत पुराना सा किला नजर आ रहा था|
तभी कुछ आवाज सुनाई दी, मैंने बिना पलक झपकाए पीछे देखा,